मोबाइल की लत, युवाओं की सेहत को कर रही पस्त
आधुनिक युग में हमारी जीवन शैली में बड़ा परिवर्तन हो रहा है। सभी घरों में स्मार्ट फोन हैं। कोरोना काल में आनलाइन कक्षा चलने के कारण स्मार्ट फोन भी सभी के घरों में हो गया है। बच्चे पढ़ाई के साथ ही इंटरनेट मीडिया और इंटरनेट का बहुत ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें इनकी लत सी लग गई है। आजकल युवा और बच्चे टीवी पर कम और मोबाइल और इंटरनेट पर सबसे अधिक समय बिता रहे हैं। दिन हो या रात युवा 24 घंटे में से करीब दस घंटे तो फोन पर ही गुजारते हैं।

शामली, जागरण टीम। आधुनिक युग में हमारी जीवन शैली में बड़ा परिवर्तन हो रहा है। सभी घरों में स्मार्ट फोन हैं। कोरोना काल में आनलाइन कक्षा चलने के कारण स्मार्ट फोन भी सभी के घरों में हो गया है। बच्चे पढ़ाई के साथ ही इंटरनेट मीडिया और इंटरनेट का बहुत ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें इनकी लत सी लग गई है। आजकल युवा और बच्चे टीवी पर कम और मोबाइल और इंटरनेट पर सबसे अधिक समय बिता रहे हैं। दिन हो या रात युवा 24 घंटे में से करीब दस घंटे तो फोन पर ही गुजारते हैं।
विकास और प्रौद्योगिकी के इस बदलते युग में मोबाइल मानव जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है। एक पल के लिए भी कोई इसे खुद से दूर नहीं करना चाहता है। इसी का नतीजा है कि माता-पिता की देखा-देखी आज छोटे बच्चे भी इसके आदी हो गए हैं। माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्य लाड़-प्यार के कारण अपने बच्चों की जिदगी में इंटरनेट मीडिया को दाखिल कर रहे है। इसके कारण शारीरिक और मानसिक समस्याओं के साथ-साथ बच्चे संस्कारों से दूर हो रहे हैं। इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब आदि अन्य एप जहां दुनियाभर में जागृति फैला रहे है, वहीं कुछ लोग अपने आपको पापुलर करने के लिए गलत सामग्री भी पोस्ट कर रहे हैं, जिन्हें बच्चे गौर से देखते हैं। अभिभावकों को अपनी पीढ़ी को संवारने के लिए सजग होना चाहिए। बचाव
आंखों को स्वस्थ रखने के लिए हरी सब्जियां, पीले फल व लिक्विड का सेवन अधिक से अधिक करें। अभिभावकों को बच्चों को समय पर हेल्दी भोजन करना चाहिए। वहीं समय समय पर उनकी काउंसलिग करनी चाहिए। इन्होंने कहा
डा. सपन गर्ग का कहना है कि मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से आंखों में सूखापन के साथ-साथ मांस-पेशियां कमजोर हो जाती है, जो सिकुड़ने लगती है। इससे सिरदर्द व आंखों में थकान होने लगती है। उनकी सलाह है कि 20 मिनट से ज्यादा इस्तेमाल ना करें, फिर आंखों को बंद करके रिलेक्स करें। उसके बाद ही दोबारा इस्तेमाल करें।
डा. इरशाद मलिक का कहना है कि मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों में चिड़चिड़ापन होता है। उन्हें समय से नींद नहीं आती है। इससे उनके शारीरिक विकास में रुकावट पैदा हो जाती है। प्रधानाचार्य राजकुमार सेन का कहना है कि अपरिपक्व उम्र में बच्चों को मोबाइल देना सही नहीं है। माता-पिता उन्हें मोबाइल का कम से कम प्रयोग करने दें। वहीं स्वयं के संरक्षण में ही बच्चों को फोन का इस्तेमाल कराना चाहिए। यह सभी अभिभावकों को नियम बनाना चाहिए। इसमें लापरवाही होने पर यह उनके भविष्य के लिए नुकसानदायक होने के साथ-साथ मस्तिष्क के संतुलन को बिगाड़ देता है। प्रधानाचार्या अलका तिवारी का कहना है कि बच्चे मोबाइल के अधिक प्रयोग से शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। संस्कारों से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। नैतिक पतन होता जा रहा है। बच्चों में जिज्ञासा अधिक होती है, जिस कारण वह उसे गंभीरता से लेते हैं और उल्टी-सीधी जानकारियां हासिल करते हैं। मोबाइल से निकले वाला रेडिएशन उनके शरीर पर दुष्प्रभाव डालता है।

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